Sunday, March 28, 2010

यह है अपनी शिक्षा...


दैनिक नवभारत टाईम्स पढ़ते समय मेरी नज़र एक ख़बर पर रूक गयी...

भुवनेश्वर।। उड़ीसा के विकास मोहराना की कहानी सरकारी स्कूलों में हो रही पढ़ाई की पोल खोलने के लिए काफी है। वह पांचवीं में पढ़ता है, पर उसे अपना नाम लिखने नहीं आता। अपने पिता के मर्डर केस के मामले में कोर्ट के सामने पेश हुआ यह बालक जब अपना नाम नहीं लिख पाया, तो कोर्ट को ताज्जुब हुआ। कोर्ट ने स्कूल को समन जारी कर पूछा है कि आखिर यह बालक पांचवीं क्लास तक कैसे पहुंच गया, जबकि वह नाम भी लिख पा रहा है।
10 साल का विकास मोहराना अपने पिता के मर्डर में केस के गवाह के रूप में कोर्ट के सामने पेश हुआ था। जांच पड़ताल के बाद जब कोर्ट ने उसे दस्तखत करने के लिए कहा, तो उसने हस्ताक्षर की जगह अंगूठे का निशान लगा दिया। कोर्ट के पूछने पर पता चला कि विकास अपना नाम नहीं लिख सकता। कोर्ट को जब यह मालूम हुआ कि वह 5वीं क्लास में पढ़ता है, तो कोर्ट ने इस मामले को संज्ञान में लिया और उसके स्कूल खालीबगीचा गवर्नमेंट स्कूल को समन जारी कर पूछा कि जो लड़का अपना नाम तक नहीं लिख सकता,वह 5वीं क्लास में कैसे पहुंच गया। कोर्ट ने स्कूल की हेडमास्टर को अदालत के सामने पेश होने को कहा है और उनसे पूछा है कि आखिर यह सब कैसे हुआ।


ऐसी ख़बरें मैने कई बार मराठी अखबारों मे भी पढ़ी हैं। भारतीय शिक्षापद्धती किस प्रकार चल रही है, इस बात का एक और नमूना यही है। एक छात्र अगर पूरी तरह अनपढ़ रह के पांचवी कक्षा तक पहुंच सकता है तो इस का अर्थ है के चौथी तक के सभी बच्चें पूरी तरह अनपढ़ ही है। उड़िसा जैसे राज्य मे ऐसी परिस्थिती है तो बिहार और उत्तर प्रदेश में तो इस से बदतर स्थिती हो सकती है। हमारे यहां प्राथमिक शिक्षा बिल्कुल ठीक तरह से नहीं दी जाती यह बात सौ आना सच है। लेकिन इसे सुधारने के लिए हमारा शासन और प्रशासन भी कुछ कदम उठाता नज़र नही आता। जो कुछ भी इस दिशा मे होता है वह सब सिर्फ़ कागज पर ही दिखाई देता है। वास्तव मे इस का आऊटपूट शून्य है।

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